उस्ताद और कॉलेज
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उस्ताद - शागिर्द का रिश्ता हमेशा से ही अहम रहा है और अगर बात की जाए कॉलेज की जहां तक पहुंचते पहुंचते उस्ताद और दोस्त में बहुत कम ही फासला रह जाता है, उन दिनों में अक्सर ऐसा होता है के किसी सर / मैम से बहुत गहरा लगाव हो जाता है और हर बात पे हम उनसे मदद और राए लेने पहुंच जाते हैं, बिल्कुल किसी ऐसे दोस्त की तरह जिसकी उम्र के साथ उसका तजुर्बा हमसे ज़्यादा हो । हमारे लिए वो थीं "हाज़रा मैम" । मुझे याद है जब हम फर्स्ट ईयर में कॉलेज में दाखिल हुए थे । पूरे जोश के साथ, दिल में हज़ारों अरमान लिए । उस वक़्त बस एक ही तो अरमान दिल में बसा होता है के अभी बस कॉलेज में आ गए अब पढ़ाई के साथ मज़े करेंगे । उस वक़्त हमें पता चला के यहां एक TG यानी टीचर गार्जियन होगा/होगी जो के क्लास में क्या चल रहा है उसकी खबर रखने का काम करेगा/करेगी । हमारी टीजी बनीं हाज़रा मैम और शुरू हुई कॉलेज लाइफ । कॉलेज लाइफ का तो क्या ही कहना फिर किसी दिन अभी तो बस इतना कह के बस करेंगे के बस भी नहीं किया जा सकता । बहरहाल हम लोग आगे बढ़े और एक सब्जेक्ट आया EEES ( Energy Environment Ecology and Society) जिसको पढ़ाने आई