उस्ताद और कॉलेज


 उस्ताद - शागिर्द का रिश्ता हमेशा से ही अहम रहा है और अगर बात की जाए कॉलेज की जहां तक पहुंचते पहुंचते उस्ताद और दोस्त में बहुत कम ही फासला रह जाता है, उन दिनों में अक्सर ऐसा होता है के किसी सर / मैम से बहुत गहरा लगाव हो जाता है और हर बात पे हम उनसे मदद और राए लेने पहुंच जाते हैं, बिल्कुल किसी ऐसे दोस्त की तरह जिसकी उम्र के साथ उसका तजुर्बा हमसे ज़्यादा हो । हमारे लिए वो थीं "हाज़रा मैम" ।


मुझे याद है जब हम फर्स्ट ईयर में कॉलेज में दाखिल हुए थे । पूरे जोश के साथ, दिल में हज़ारों अरमान लिए । उस वक़्त बस एक ही तो अरमान दिल में बसा होता है के अभी बस कॉलेज में आ गए अब पढ़ाई के साथ मज़े करेंगे । 


  उस वक़्त हमें पता चला के यहां एक TG यानी टीचर गार्जियन होगा/होगी जो के क्लास में क्या चल रहा है उसकी खबर रखने का काम करेगा/करेगी । हमारी टीजी बनीं हाज़रा मैम और शुरू हुई कॉलेज लाइफ । कॉलेज लाइफ का तो क्या ही कहना फिर किसी दिन अभी तो बस इतना कह के बस करेंगे के बस भी नहीं किया जा सकता । बहरहाल हम लोग आगे बढ़े और एक सब्जेक्ट आया EEES ( Energy Environment Ecology and Society) जिसको पढ़ाने आईं हाजरा मैम । सबसे अच्छी बात ये लगी के जो ये पढ़ाती थीं उसे एन्जॉय करते थे हम , मज़े लेते थे । पहले समझते फिर लिखते । बाक़ी क्लास की तरह लिख लिख के हाथ की उंगलियों में दर्द नहीं होता । 

    पहला सेमेस्टर गुज़रा और दूसरे सेम में हम और कॉलेज दोनों एक दूसरे से दूर दूर होने लगे थे जैसे के रिलेशनशिप से बोर हो जाने वाले कपल होने लगते हैं । वो मोमेंट मुझे अभी भी याद आता है के मैं घर से अभी अभी वापस आया ही था के  घर पे कॉलेज की तरफ से एक लेटर पहुंचा जिसमें मेरे वालिदैन को ये लिखा था के " आपका बच्चे की हाजरी सिर्फ 40 % है ।" घर से कॉल आया और मैं हैरान रह गया के पिछले सेम में तो मैं गैर हाज़िर था नहीं । मैं हाजरा मैम के ऑफिस में गया और सारा मामला बताया । उस वक़्त वहां कुछ और स्टूडेंट्स भी थे । मैम ने मुझे वहीं बैठने को और इंतजार करने को कहा । सब के जाने के बाद बताया के वो जो चिट्ठी गई है उसमें उन 10 दिनों  की अटेंडेंस है जिन दिनों तुम घर थे , मैंने 4 दिन की अटेंडेंस लगा दी है , ये सबके सामने बताना वाजिब नहीं था इसलिए तुम्हें बिठाया । मैंने मैम को कहा के घर से कॉल आ रहा है यहीं बात आप अम्मी से का दें । उन्होंने बिना किसी झिझक के क़ुबूल कर ली और कॉल पे अम्मी को सारी बातें समझ दिं। 

   वक़्त का पहिया आगे बढ़ता गया और हम कॉलेज से दूर होते चले गए जिसकी वजह से 2nd ,3rd सेमेस्टर फॉर्म फॉरवार्ड कराना बड़ा मुश्किल हुआ था । 


        4 th सेम की बात है, एजुकेशन लोन का प्रोसेस लंबा होने कि वजह मुझे घर ज़्यादा दिन तक रुकना पड़ गया था । वापस आते ही फॉर्म फॉरवार्ड कराने मैं कॉलेज पहुंच गया । फॉर्म फॉरवार्ड कराने वालों की लंबी कतार में शामिल हो कर मैं कॉलेज CEO ,Nigam sir के पास पहुंचा जिनसे मेरी इस बात पे बहस हो गई के मैं फीस का इंतज़ाम करने ही घर गया था घूमने नहीं । अब आप फॉर्म फॉरवार्ड क्यूं नहीं कर रहे ? बहसो मुबहसा के बाद मैं वहां से बाहर आया तो हाजरा मैम ने मुझे बुलाया और कहा क्यूं उधर बहस कर रहे हो , अपना रॉल नंबर बोलो। मैंने बता दिया । उन्होंने कहा जाओ, शाम को चेक कर लेना । अब मुझे वो कड़ी मिल गई थी जिस से के मैं लंबी कतार में लगने से बच निकलने वालों में शामिल होने वाला था , और फिर जब शॉर्ट कट मिल जाए तो लॉन्ग रस्ते जाता कौन है???


कॉलेज के चार सालों में फॉर्म से ले कर क्लास तक की प्रॉबलम , क्लास से ले के ऑफिस तक की प्रॉबलम, हर बार हाजरा मैम ही याद आती थीं और हेल्प करते वो थकती नहीं थीं । आज भी जब मैं कॉलेज पहुंचा तो उन्होंने उसी अंदाज़ में बोला " आवो औरंगज़ेब बैठो" और मुझे कॉलेज का सारा पस मंज़र याद आ गया।


आज कॉलेज से पासआउट हुए 3 साल से ज़्यादा हो गएऔर अभी जब भी कॉलेज का ज़िक्र आता है तो पहले पहल हाजरा मैम का ध्यान आता है ।  वो हमें पढ़ाती नहीं थीं लेकिन पढ़ाने वालों से ज़्यादा जानती थीं । शायद यहीं वजह है के जब भी कॉलेज से जुड़े किसी काम का ज़िक्र होता है तो एक दम से ज़बान पे आ जाता है "हाज़रा मैम हैं ना , उन्हें बताओ वो देख लेंगी " । ठीक वैसे ही जैसे आज तक सारे मामले देखते अाई हैं ।




✍️बहुत सारे शागिर्दों में से एक शागिर्द औरंगज़ेब आज़म

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