मैं और मेरा नाम


अंग्रेजी के एक महान लेखक शेक्सपियर ने कभी कहा था कि, "नाम में क्या रखा है?"
मैं भी यही समझता था कि, नाम में क्या रखा है? आपकी पहचान आपके काम से होती है,और नाम के तरफ कभी ध्यान दिया ही नहीं। हालांकि मुझे अपने नाम की वजह से कई सारे ह़ालात पेश आए।  जो लोग इस नाम को पसंद करते थे, इस नाम के पीछे छुपी हुई असलियत को जानते थे, उन्होंने तो शाबाशी दी, और उम्मीद भरी निगाह से देखा, जैसे कि कोई ऐसा काम अधूरा हो, जिस को पूरा करने की तरफ इशारा कर रहे हों। कोई राज़ हो जिसे दुनिया के सामने उजागर करने के लिए उकसा रहे हों, और जो इस नाम को पसंद नहीं करते, वो मेरे नाम को सुनते ही बस यह कह देते अरे वो तो बड़ा ज़ालिम था, और उसने अपने खानदान वालों के साथ ये-ये ज़ुल्म किया था, बग़ैर तह़क़िक किए हुए के वो ज़ुल्म था या इंसाफ़? और फिर बहुत सारे क़िस्से इस अंदाज़ में सुनाने लगते मानो कि वो सारे काम मैंने खुद ही किया हो। 
कभी नाम की स्पेलिंग की गड़बड़ी तो कभी बोलने में तलफ़्फ़ुज़ यानि उच्चारण में गड़बड़ी सुनते सुनते तो अब आदत सी हो गई है।

बहरहाल ये तो एक छोटा मसला था लेकिन क्या हो जब आपके नाम की वजह से आपका और आपकी खुसुसियात का अंदाज़ा लगाया जाने लगे? इस सिलसिले में बहुत सारे वाक्यात हैं जो मुझसे और मेरे नाम से जुड़े हैं। इन में से कुछ यहाँ पेश करना चाहूंगा। 

मुझे याद है मेरी इंजीनियरिंग का सेकंड सेमेस्टर था और उस दिन मेरे कम्युनिकेशन स्किल का प्रैक्टिकल था। वायवा लेने के लिए एक्सटर्नल आया हुआ था। मेरा रोल नंबर 27 था उसके पहले मेरे दोस्त अदनान का रोल नंबर 26 था। एक्सटर्नल रूम में जाते ही एक्सटर्नल ने रोल नंबर 26 से नाम पूछा उसने "अदनान" बताया। एक्सटर्नल ने पूछा, अरबी जानते हो? अदनान ने कहा, नहीं सर। एक्सटर्नल ने मेरा नाम पूछा और मेरे नाम बताते ही थोड़ी देर के लिए घूरने लगा, जैसा कि मैंने पहले बताया ना के नाम सुनते ही लोग पहले से ही मेरे बारे में सोच लेते हैं। कोई अच्छा कोई बुरा। थोड़ी देर घुरने के बाद एक्सटर्नल ने मुझसे पूछा, अरबी जानते हो? मैंने कहा, हां सर थोड़ा-थोड़ा। फिर थोड़ी सी अरबी और थोड़ा कम्युनिकेशन के बारे में सवाल करने के बाद फिर मेरे नाम पर आ गया। उन्होंने मुझसे पूछा कि तुम्हें पता है यह नाम किसका है क्या तुम इस नाम की हिस्ट्री जानते हो?  मैंने कहा, जी सर।  फिर उन्होंने सवाल किया, इस नाम वाले को पसंद करते हो? मैंने कहा, जी सर, क्योंकि जो काम उसने किया उसके पीछे की वजह मुझे उसके नाम और काम को पसंद करने पर मजबूर कर देती है। उस वक्त तो उन्होंने कुछ नहीं कहा, मगर जब हम लोग एक्सटर्नल खत्म होने पर कमरे से निकलने लगे तो तो उन्होंने कहा, और भी बहुत सारे लोग हैं पसंद करने के लिए। मैं कुछ कह नहीं पाया लेकिन मेरे ज़ेहन में एक सवाल छूट गया जो आज तक गूंजता है के इस नाम से आखिर सबको परेशानी क्यों? और अगर इस नाम वाले ने अच्छा काम किया है तो इसे पसंद क्यों न किया जाए? और अगर कुछ बुरा किया है तो क्या इतना बुरा के उसके नाम से भी नफरत की जाने लगे?  या फिर हमने उस शख्स को समझने में ग़लती की है?  
दिन ढलते गए और कुछ छोटे मोटे वाक्यात के बाद फिर एक बड़ा वाकिया पेश आया। 

अगला वाकिया कुछ युं पेश आया के फासीवाद सरकार के लाए हुए संविधान विरोधी क़ानून के ख़िलाफ़ आंदोलन के दौरान हम बहुत सारे अजनबी चेहरों से मिले एक दूसरे को जाना एक दूसरे को समझा, एक दूसरे की सोच को समझने की कोशिश की और साथ - साथ आगे बढने के गुर सीखे। उस दरमियान हमारा अलग अलग जगहों पर महफिल और सभाओं में जाना होता था। एक जगह जो कि भोपाल से लगभग 90 किलो मीटर की दूरी पर है वहाँ जाना था। हम तीन लोग (यानी मैं और 2 साथी अब्दुल्ला भाई और ज़मा मैडम) हम तीनों वहाँ सभा में पहुंचे। उस सभा में संविधान और बराबरी पर बात करने वाले मौजूद थे, और बात भी बराबरी की हो रही थी। अब्दुल्ला भाई ने अपनी बात रखी  ज़मा मैडम ने भी अपनी बात रखी। जब बारी मेरी आई तो मुझसे नाम पूछा गया और जवाब मिलते ही ये कहा गया के साहब आपका नाम ही बहुत भारी है, जिसकी वजह से आपको अपनी बात रखने की इजाजत नहीं दी जा सकती। 
उस वक्त मुझे बिल्कुल भी समझ में नहीं आया कि मेरे नाम में ऐसा क्या है?  मैं वहां बैठे हुए लोगों से बात करना चाहता था उनके विचार को उनकी सोच और समझ को जानना चाहता था, और अपनी समझ को उनके साथ बांटना चाहता था, जिसके लिए हम लगभग 90 किलोमीटर का सफर करके वहां पहुंचे थे। लेकिन सिर्फ मेरे नाम की वजह से मुझे वहां अपनी बात रखने की इजाजत नहीं दी गई, हालांकि जैसा कि मैंने बताया, उस महफिल में बराबरी की बात करने वाले लोग मौजूद थे। फिर आप समझ सकते हैं कि जब संविधान और बराबरी की महफिल में इस नाम की बुनियाद पर इतना बड़ा फैसला लिया जाए, तो फिर उस महफिल का क्या हाल होगा जिसमें संविधान और बराबरी का दूर-दूर तक कोई लेना नहीं?

और एक हाल ही में हुए वाकिए के साथ अपनी बात खत्म करना चाहूंगा।  हमारे साथी जो कि हमारे क्रांतिकारी पत्रकार होने के साथ हमारे संविधान लाइव की क्लास के गुरु भी हैं जिन्होंने हम लोगों को पत्रकारिता के गुर सीखाए हैं, उन्होंने एक आर्टिकल लिखा जिसमें उन्होंने अभी हाल ही में हुए लॉकडाउन के हालात और उसमें हम लोगों ने जो प्रवासी मजदूरों की मदद की उसके बारे में जिक्र किया। 
उस आर्टिकल के लिखने के कुछ दिन बाद उन्होंने एक बात बताइ। मुझसे कहने लगे कि उनके एक दोस्त ने उनके आर्टिकल को देखा और उसमें उस शख्स को तुम्हारा नाम दिख गया और तुम्हारा नाम देखते ही आर्टिकल पढ़ने वाला शख्स कहने लगा के अब तुम इन लोगों के नाम भी लेने लगे। इन लोगों की तरह ही हो गए हो तुम। 
 यह सुनते ही जो साथी वहां मौजूद थे हम  सब एक दूसरे को देखने लगे मानो यह सवाल कर रहे हो के इस नाम में ऐसी बुराई क्या है? जवाब वहीं मिला, कुछ नहीं।

अरे बातों बातों में मैं तो अपना नाम बताना भूल ही गया, और शायद मैंने जानबूझकर अपना नाम शुरू में नहीं बताया क्योंकि शायद आप यहां तक न पहुंच पाते। शायद आप भी मेरा नाम सुनकर मेरे बारे में ख्याल बना लेते। शायद अच्छा शायद बुरा। 
बहरहाल मेरा नाम है औरंगज़ेब और तख़ल्लुस है  आज़म, 
औरंगज़ेब  आज़म।

खैर अब जब भी मैं सुनता हूँ कि, "नाम में क्या रखा है?"  तो बे साख्ता मुंह से निकलता है कि, "नाम में कुछ रखा हो या न रखा हो लेकिन नाम की वजह से लोग कभी-कभी आपको उस जगह रख देते हैं जहां से आपका कोई वास्ता भी नहीं रहता"। 

✍️इ.  औरंगज़ेब आज़म

Comments

  1. भाई आपने हक़िक़ी बयान करदी पर आज की दुनिया मे बिना नाम के कोई काम ँनही और कोई भी काम बिना नाम के नही किया जा रहा हे माफी अगर कोई बात गलत लगे तो पर दर हक़ीक़त यही हे बरहाल अच्छा लिखा हे आपने और हा मे 1 बात और कहदू मेरे खातिर 1 artical लिखो आप और उसमे नसीहत दो लोगो को बिना नाम के काम करना सीखे । जज़कल्लाह बहुत अच्छी बात आपने शेयर करी शुक्रिया

    आमिर_ज़ैद_भोपली

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  2. Aapko yaad hoga maine bhi aapse poocha tha ke is naam ki wajah se koi pareshani to nahi hui ? Log waqai is naam ko bohot judge karte hain, halanke, naam to naam hai. Lekin haan, aap ka naam Aurangzeb hone ko wajah se shayad aapko zindagi bhar safaiyan deni paden. Magar aap peeche mar hatiyega! Well written!

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  3. Aurangzeb ek imandar aur Insaaf pasand badshah
    Lekin nafrat k chalte ghalat tarah se pesh Kiya Gaya
    Isme unka koi qusoor nahi
    Ye Naam aur Naam wala Insaan dono khubsurat h agar kuch ghalat h to wo h soch jiski ladai ham aaj tak lad rahe h

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