मेरे बचपन का दोस्त।

अज़हर उर्फ डब्ल्यू
 मेरा कजन भाई कम दोस्त ज्यादा। बचपन से हम लोग साथ रहे खेले-कूदे, पढ़ा-लिखा और जिंदगी का हर लम्हा आपस में साझा किया। लुका छुपी हो  या  गिल्ली डंडा  या फिर क्रिकेट  हमने साथ में  सब के मज़े लिए, एक दूसरे की जिंदगी को समझने की कोशिश की  और साथ ही  जवानी की दहलीज पर कदम भी रखा। 
उन दिनों  की यादें सबकी अतरंगी होती हैं जब बचपने को छोड़कर कोई लड़का / लड़की जवानी के साँचे में ढल रहा होता/होती है। है न?      
इसकी भी कुछ ऐसी ही दास्तां रही कुछ अजीब किस्से, कुछ अतरंगी कहानियां, कुछ शरारती हरकतें, जैसे क्लास की खूबसूरत लड़की को खत लिखना और उसे बिना कहे उसके बैग में डाल देना। घरवालों से छुपकर मोबाइल रखना और नई बनी हुई गर्लफ्रेंड से बात करना। यह सब इसके साथ हो रहा था और इसकी खबर किसी को ना हो यह मेरी जिम्मेदारी थी हद तो तब हो जाती थी जब इसकी लड़ाई गर्लफ्रेंड से हो जाती थी, उस वक्त  इसका फोन  उठाना  और  इसकी गर्लफ्रेंड से बात करना  यह सब जिम्मेदारी भी मेरी ही होती थी  और मुसीबत ये थी के उस वक्त मुझे पता नहीं था के बात क्या करनी है? 
कई बार  हम  किसी मुद्दे पर  एक हो जाते थे  और कई बार  हम एक नहीं हो पाते थे और लड़ाई भी हो जाती थी। 
बचपन से एक ही स्कूल में पढ़े प्राइवेट स्कूल में मैं 1 क्लास सीनियर था लेकिन डब्लू भाई की उम्र ज्यादा होने की वजह से चलती उसी की थी, और छोटे होने की वजह से मुझे बर्दाश्त करना पड़ता था। हाई स्कूल में हम दोनों साथ में ही 9th क्लास में एडमिशन लिए, मैट्रिक बोर्ड साथ में ही दिया। किस्मत की बात कहिए के मैट्रिक एग्जाम में हम दोनों की सीट आगे पीछे थी वह शायद इसलिए भी कि हमारे नाम की शुरुआत A से होती है और बाद के लेटर भी कुछ खास दूरी पर नहीं हैं। 
मैट्रिक के बाद हमारे बीच थोड़ा फासला आया, लेकिन डिजिटली हम लोग कनेक्टेड रहे। 

आज जब मैंने शाम को कॉल किया तो वह कुछ घबराया हुआ था। मैंने पूछा सब ठीक? उसने कहा हाँ, मैं हॉस्पिटल जा रहा हूं, तुम्हारी भाभी हॉस्पिटल में है। मैं हालात की नज़ाकत को समझ गया और उसकी चिंता को कम करने के लिए ढांढस बंधाते हुए कहा, भाई जल्दी से खुशखबरी सुनाओ और मिठाई खिलाओ। मेरी कोशिश नाकाम होती हुई दिखी जब उसने उसी अंदाज में हल्के से हां कहा। मैंने उस वक्त कुछ भी कहना मुनासिब नहीं समझा और सही वक्त का इंतजार करने लगा। 

कुछ देर के बाद उसका मैसेज आया एक नव वारिद मासूम की तस्वीर  भेजी थी उसने। उस मैसेज में उसकी आवाज़ तो नहीं थी और ना ही उसका चेहरा लेकिन उसका इमोशन उस तस्वीर के साथ झलक रहा था, कि "अब वह खुश है" , एक नव वारीद मेहमान के साथ। 

अब मुझे इंतजार है कि यह नव वारीद मेहमान बड़ा हो जाए और मैं उसे हम दोनों की दिलचस्प कहानियां बताते हुए बीच में रुक जाऊं, फिर जब वह मासूम बोले कि आगे क्या? तो मैं कहूं बेटा पहले होमवर्क  पूरा करके आओ फिर आगे की कहानी। और वो मेरी बात को साजिश से बुना हुआ जाल कहते हुए चल पड़े अपने बस्ते की तरफ। 😅(क्योंकि इल्म ही निजात का ज़रिया है।)  
✍️ई औरंगजे़ब आज़म

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