मैं और मेरा नाम
अंग्रेजी के एक महान लेखक शेक्सपियर ने कभी कहा था कि, "नाम में क्या रखा है?" मैं भी यही समझता था कि, नाम में क्या रखा है? आपकी पहचान आपके काम से होती है,और नाम के तरफ कभी ध्यान दिया ही नहीं। हालांकि मुझे अपने नाम की वजह से कई सारे ह़ालात पेश आए। जो लोग इस नाम को पसंद करते थे, इस नाम के पीछे छुपी हुई असलियत को जानते थे, उन्होंने तो शाबाशी दी, और उम्मीद भरी निगाह से देखा, जैसे कि कोई ऐसा काम अधूरा हो, जिस को पूरा करने की तरफ इशारा कर रहे हों। कोई राज़ हो जिसे दुनिया के सामने उजागर करने के लिए उकसा रहे हों, और जो इस नाम को पसंद नहीं करते, वो मेरे नाम को सुनते ही बस यह कह देते अरे वो तो बड़ा ज़ालिम था, और उसने अपने खानदान वालों के साथ ये-ये ज़ुल्म किया था, बग़ैर तह़क़िक किए हुए के वो ज़ुल्म था या इंसाफ़? और फिर बहुत सारे क़िस्से इस अंदाज़ में सुनाने लगते मानो कि वो सारे काम मैंने खुद ही किया हो। कभी नाम की स्पेलिंग की गड़बड़ी तो कभी बोलने में तलफ़्फ़ुज़ यानि उच्चारण में गड़बड़ी सुनते सुनते तो अब आदत सी हो गई है। बहरहाल ये तो एक छोटा मसला था लेकिन क्या हो जब आपके नाम की वजह से आप...