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हमसफ़र और चाँद

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 रात के तकरीबन 2:00 बज रहे थे । चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था। पूरा शहर रात की आगोश में समाया हुआ ख्वाबों की हसीन दुनिया में गोते लगा रहा था।  गलियों में कुछ  आवारा कुत्तों के  भौंकने की आवाज़ें आ रही थीं ।  रिया अपने छत के किनारे वाले हिस्से पर बैठकर टिमटिमाते हुए तारे और खिलते हुए चाँद को देख रही थी।  उसे यूँ अकेला बैठ कर चांद और तारे देखना बहुत पसंद था वो अक्सर घंटों ऐसे ही अकेले चाँद को देखा करती थी। आज आसमान में कुछ  बादल भी छाये हुए थे। वो एकटक चाँद को निहारे जा रही थी। ऐसा लग रहा था के चांद तेजी से भागा जा रहा है । हालांकि वो साइंस की पढी-लिखि स्टूडेंट थी । उसे चाँद तारों की गर्दिश का इल्म था । उसे पता था कि यह चांद इतनी तेज़ भाग नहीं रहा बल्कि यह बादल इसके दूसरी तरफ तेजी से भागे जा रहे हैं जिसकी वजह से चांद भागता हुआ दिख रहा है, लेकिन वो अपने ख्यालों में ऐसे गुम थी के उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था । वो चाँद को देखते देखते खुद ही खुद में बड़बड़ाने लगी "मैं तुमसे चाँद तारों की फरमाइश नहीं करने वाली, मुझे चाँद तारे तोड़ कर लाने के वादे मत करना बस मेरे साथ यूँ ही घंटों बैठ कर चाँद